
Ranchi: मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया, झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया. मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ नहीं कहता था. वे मेरे पथप्रदर्शक थे, मेरे विचारों की जड़ें थे, और उस जंगल जैसी छाया थे जिसने हजारों-लाखों झारखंडियों को धूप और अन्याय से बचाया. मेरे बाबा की शुरुआत बहुत साधारण थी. नेमरा गांव के उस छोटे से घर में जन्मे, जहां गरीबी थी, भूख थी, पर हिम्मत थी. बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया जमींदारी के शोषण ने उन्हें एक ऐसी आग दी जिसने उन्हें पूरी जिंदगी संघर्षशील बना दिया.
मैंने उन्हें देखा है…
मैंने उन्हें देखा है, हल चलाते हुए, लोगों के बीच बैठते हुए, सिर्फ भाषण नहीं देते थे, लोगों का दुःख जीते थे. बचपन में जब मैं उनसे पूछता था: “बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?” तो वे मुस्कुराकर कहते: “क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली.”
साभारः हेमंत सोरेन के फेससबुक वॉल से…